मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, कोनराड एडेनॉर स्टिफ्टंग (केएएस) के साथ मिलकर इंडो–पैसिफिक पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है; क्षेत्रीय सहयोग पर विशेषज्ञों के विचार एकत्र किये
उडुपी, 3 नवंबर 2023 – मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (एमएएचई), कोनराड एडेनॉर स्टिफ्टंग (केएएस) के साथ मिलकर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। 3 और 4 नवंबर को यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन “इंडिया एंड ईयू इन दि इंडो पैसिफिक: स्ट्रैटेजिज, ऑपरचुनिटीज एंड चैलेंजेज” (इंडो-पैसिफिक में भारत और यूरोपीय संघ: रणनीतियाँ, अवसर और चुनौतियाँ) विषय पर होगा। मणिपाल सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज (एमसीईएस) और डिपार्टमेंट ऑफ जियो पॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस (भू-राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग) डीजीआईआर द्वारा आयोजित सम्मेलन, भारत और यूरोप के शिक्षाविदों, राजनयिकों, नीति निर्माताओं तथा शोधकर्ताओं को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बदलती भू-राजनीतिक गतिशीलता में भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) की भूमिका पर विचार-विमर्श करने के लिए एक साथ लाता है।
राजदूत राजीव भाटिया ने कहा, “यूरोपीय संघ (ईयू) और भारत के बीच आर्थिक और प्रौद्योगिकीय सहयोग का विस्तार पारस्परिक तौर पर लाभप्रद है। हालाँकि, यूरोप को चीन के प्रति अपनी नीति में अपनी दुविधा को स्पष्ट करने की आवश्यकता है”। मणिपाल में इंडिया एंड ईयू इन दि इंडो-पैसिफिक पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद मुख्य भाषण देते हुए उन्होंने आगे कहा, सुरक्षा और रणनीति पर व्यापार को प्राथमिकता देने के प्रति यूरोपीय संघ का झुकाव भविष्य में मुश्किलें पैदा कर सकता है। उन्होंने यूरोपीय संघ और भारत के बीच पारस्परिक रूप से लाभप्रद और गहरे सहयोग के लिए नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, समुद्री सुरक्षा और सतत विकास की संभावनाओं पर निरंतर विचार-विमर्श की आवश्यकता की वकालत की।
अपने उद्घाटन भाषण में प्रोफेसर एमडी नलपत ने इसी विचार को दोहराया: “एक ऐसे तरीके से जो हमारे सभी लोगों के लिए फायदेमंद हो, भारत और यूरोपीय संघ को एक ऐसे ढांचे का पता लगाने की जरूरत है जो सफल सहयोगी नेटवर्क तैयार करे।” उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के बाद पश्चिम जर्मनी के पहले चांसलर कोनराड एडेनॉर के लोकतांत्रिक आदर्शों का आह्वान किया और इस बात पर जोर दिया कि इस क्षेत्र में हिंसक शक्तियों को खत्म करने में यह आदर्श कैसे महत्वपूर्ण हैं।
दुनिया भर के सकल घरेलू उत्पाद में साठ प्रतिशत का योगदान देने वाले एक ऐसे क्षेत्र के रूप में, इंडो-पैसिफिक प्रतिस्पर्धा के एक स्थल के रूप में उभरा है और इसने बहुपक्षीय पहल, सुरक्षा व्यवस्था और रणनीतिक साझेदारी की संभावनाओं पर विचार करने के लिए वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। उद्घाटन सत्र ने दो दिन के आयोजन के लिए मंच तैयार कर दिया। इसमें भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा होगी। यह जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, संरक्षण के साथ-साथ भू-आर्थिक और रणनीतिक हितों के साथ व्यापार-प्रभावी संबंधों को संतुलित करने के साथ गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा पर केंद्रित होगा।
सत्र की अध्यक्षता एमएएचई के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) एमडी वेंकटेश ने की, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों और रणनीतियों को विकसित करने के लिए युवा मस्तिष्क को निखारने और व्यस्त रखने में विश्वविद्यालयों की महत्वपूर्ण भूमिका देखी। साथी पैनलिस्ट, सुश्री सिमरन ढींगरा, केएएस में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की प्रमुख, ने समुद्री सुरक्षा, रक्षा साझेदारी और आतंकवाद विरोधी मुद्दों पर भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को मजबूत करने की अनिवार्यता को रेखांकित किया, खासकर तब जब हिन्द महासागर में भारत की भूमिका को तेजी से प्रमुख माना जा रहा है। मणिपाल सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज (एमसीईएस) की प्रमुख प्रोफेसर नीता ईनामदार ने सभा का स्वागत किया और आगे कहा, “मुझे उम्मीद है कि सहयोग इस सम्मेलन का उद्देश्य बन जाएगा और हम सभी इस बात की आशा कर सकते हैं कि दुनिया को रहने के लिए बेहतर बनाने के लिए हम जो बदलाव ला सकते हैं, लायेंगे।” डीजीआईआर की प्रमुख प्रोफेसर केपी विजयालक्ष्मी ने धन्यवाद प्रस्ताव के साथ कार्यक्रम का समापन किया।
यह सम्मेलन भारत और यूरोप भर से लगभग तीस प्रतिनिधियों की मेजबानी करता है। दो दिनों के सत्र में व्यापार और कनेक्टिविटी, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे, तकनीकी नवाचार और विकास, समुद्री सुरक्षा और शैक्षिक तथा सांस्कृतिक सहयोग जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय सहयोग में सुधार के लिए रणनीतिक अवसरों और चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।