इप्सोस सर्वेक्षण में शामिल डॉक्टरों ने माना औपचारिक दिशानिर्देशों से वयस्क टीकाकरण को बढ़ाने में मिलेगी मदद
· 90% से अधिक डॉक्टरों का कहना है कि वयस्क टीकाकरण दिशानिर्देशों की कमी के कारण टीकाकरण को अपनाने को लेकर रुचि की कमी होती है
· 83% उम्रदराज लोगों के लिए टीका लगवाने का प्राथमिक कारण डॉक्टर की सिफारिश है
· डॉक्टर 50+ वर्ष की आयु वाले अपने केवल 16% रोगियों को वयस्क टीकाकरण (Adult Vaccination) की सलाह देते हैं
लखनऊ । द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (API) और इप्सोस (Ipsos) ने हाल ही में 16 शहरों में 50 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों, उनकी देखभाल करने वालों और डॉक्टरों के बीच वयस्क टीकाकरण के बारे में एक महत्वपूर्ण सर्वे किया है। सर्वेक्षण से पता चला है कि वयस्क टीकाकरण की दर आखिर क्यों कम है। भारत में वयस्क टीकाकरण सर्वेक्षण से पता चलता है कि 50 वर्ष या इससे अधिक आयु के 71% लोग वयस्क टीकाकरण के बारे में जानते हैं, लेकिन इनमें से केवल 16% ने ही कोई वयस्क टीका लिया है। मरीजों और डॉक्टरों ने कम टीकाकरण के लिए अलग-अलग कारण बताए हैं।
द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया, लखनऊ शाखा की एक्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य डॉ. के. पी. चंद्रा ने कहा, “वयस्क लोग टीकाकरण को लेकर डॉक्टर के सुझाव पर भरोसा करते हैं। उनके मन में टीके की सेफ्टी एवं प्रभाव को लेकर कुछ शंका होती है, जो उन्हें टीका लगवाने से रोकती है। इससे पता चलता है कि टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए डॉक्टरों और वयस्क लोगों के बीच टीकाकरण के महत्व के बारे ज्यादा से ज्यादा बातचीत होनी चाहिए। वयस्क टीकाकरण को लेकर औपचारिक दिशानिर्देश होने से ऐसी बातचीत को बढ़ावा मिलेगा। बढ़ती उम्र के लोगों को इस बारे में भी शिक्षित करना होगा कि शिंगल्स जैसी संक्रामक बीमारियां कितनी खतरनाक हो सकती हैं और किस तरह से टीकाकरण उनके स्वास्थ्य को सही रखने में मददगार हो सकता है। इससे लोग टीका लगवाने के लिए प्रोत्साहित होंगे।”
सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश डॉक्टरों (90%) का कहना है कि औपचारिक दिशानिर्देशों की कमी के कारण रोगियों में टीकाकरण के प्रति रुचि और इसे अपनाने में कमी आती है। डॉक्टर भी अपने मरीजों के साथ वयस्क टीकाकरण पर चर्चा करने में झिझकते हैं क्योंकि उनके पास समय की कमी होती है और उन्हें यह भी लगता है कि मरीज लागत की वजह से बीमारी की रोकथाम करने की बजाय जल्द उपचार कराना चाहते हैं। इसलिए डॉक्टरों का मानना है कि मरीज टीकाकरण की सिफारिशों के प्रति कम उत्सुकता दिखाते हैं। वहीं मरीजों का कहना है कि उन्हें अपने डॉक्टरों से टीकाकरण के लिए कोई ठोस सिफारिश नहीं मिलती है, इसलिए उन्होंने सक्रिय रूप से वयस्क टीकाकरण नहीं कराया है। 50 वर्ष या इससे अधिक आयु के 69 प्रतिशत लोग और उनकी देखभाल करने वाले (76%) डॉक्टरों से वयस्क टीकाकरण के बारे में नहीं पूछते क्योंकि उनका मानना है कि यदि उन्हें इसकी आवश्यकता होगी, तो उनके डॉक्टर खुद इसकी सिफारिश करेंगे। इस बारे में पूछे जाने पर कि वयस्क टीकाकरण में सुधार कैसे किया जाए, तो वयस्क उत्तरदाताओं (55%) और उनकी देखभाल करने वालों (48%) ने कहा कि कोविड-19 टीकाकरण जागरूकता के लिए लागू किए गए उपाय वयस्क टीकाकरण को अपनाने में वृद्धि कर सकते हैं।
सर्वेक्षण में लखनऊ एक अपवाद की तरह सामने आया। यहां डॉक्टरों की ओर से रिकमेंडेशन तो कम है, लेकिन टीका लगवाने वालों की संख्या राष्ट्रीय औसत की तुलना में उल्लेखनीय रूप से ज्यादा है। डॉक्टरों ने 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के मात्र 20 प्रतिशत लोगों को ही वयस्क टीकाकरण का सुझाव दिया, लेकिन यहां 82 प्रतिशत लोगों ने इस तरह का कोई न कोई टीका लगवाया है। यही नहीं, 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के लगभग सभी (94 प्रतिशत) लोगों को वयस्क टीकाकरण के बारे में जानकारी है। उल्लेखनीय रूप से 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के ज्यादातर (92 प्रतिशत) लोग डॉक्टर पर भरोसा करते हैं, अगर डॉक्टर उन्हें टीका लगवाने की सलाह दें। उत्तरी जोन में कुल मिलाकर डॉक्टरों ने 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के 25 प्रतिशत वयस्कों को टीका लगवाने का सुझाव दिया है, जो राष्ट्रीय स्तर पर 16 प्रतिशत के औसत की तुलना में उल्लेखनीय रूप से ज्यादा है।
वयस्कों के टीकाकरण के बारे में कुछ ग़लतफहमियां भी लोगों को टीका लगवाने से रोकती हैं। 50 प्रतिशत लोगों को लगता है कि वैक्सीन की ज्यादा डोज लेने से वे इन पर निर्भर हो जाएंगे। 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के आधे से ज्यादा लोग (58 प्रतिशत) और उनकी देखभाल करने वाले 62 प्रतिशत लोग मानते हैं कि उन्हें या उनके परिवार के लोगों को बीमारियों से बचाने के लिए टीके से भी ज्यादा बेहतर तरीके उपलब्ध हैं। लखनऊ में 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के 88 प्रतिशत लोगों ने इस बात से सहमति जताई।
