उत्तर प्रदेश की जेलों में सबसे अधिक कैदी, हाई कोर्ट में आधे से ज्यादा जजों के पद खाली — इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 का खुलासा
कुछ उत्साहजनक सुधार:
- 2017 से 2023 के बीच उत्तर प्रदेश में कांस्टेबल पदों की रिक्तियां आधी हो गईं
- जेल बजट में 32% और पुलिस बजट में 10% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई
- राज्य ने कानूनी सहायता बजट में 90% से अधिक योगदान दिया, जो कई राज्यों से बेहतर है
अब भी बनी हुई हैं गंभीर कमियां:
उत्तर प्रदेश की समग्र रैंकिंग 2025 में एक पायदान ऊपर चढ़ी है, लेकिन 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों में यह अब भी सबसे निचले तीन राज्यों में बना हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में क्षमता की गंभीर कमी अभी भी जारी है।
- हाई कोर्ट में 51% न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं, जो देश में सबसे अधिक है
- हर चार में से एक जिला न्यायाधीश का पद 2025 में रिक्त था
- अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व केवल 12%, जो देश में सबसे कम है
- एक कानूनी सेवा क्लिनिक औसतन 815 गांवों की सेवा कर रहा है, जो विधिक सहायता की पहुंच में भारी अंतर को दर्शाता है
लखनऊ, 15 अप्रैल: देश में न्याय वितरण पर राज्यों की एकमात्र रैंकिंग, 2025 इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) को आज जारी किया गया। इसमें उत्तर प्रदेश को कानूनी सहायता में 18वां और न्यायपालिका में 17वां स्थान मिला है, जबकि कुल मिलाकर इसे 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों (प्रत्येक की आबादी एक करोड़ से अधिक) में 17वां स्थान मिला है। 2022 में यह इसमें 18वें नंबर पर था।
शीर्ष स्थान पर कर्नाटक कायम है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (2022 में 5वें से दूसरा), तेलंगाना (तीसरा), और केरल (छठा) स्थान पर हैं। छोटे राज्यों (1 करोड़ से कम आबादी) में सिक्किम ने फिर से पहला स्थान हासिल किया, इसके बाद हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश हैं।
द इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) की शुरूआत टाटा ट्रस्ट्स ने की थी और उसकी पहली रैंकिंग 2019 में प्रकाशित हुई थी। यह रिपोर्ट का चौथा संस्करण है, जिसे सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन काउज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशियेटिव, दक्ष, टीआईएसएस-प्रयास, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और आईजेआर के डाटा पार्टनर हाऊ इंडिया लिव्स जैसे भागीदारों के साथ मिलकर बनाया गया है।
आईजेआर 2025 पिछली तीन रिपोर्ट की तरह परिमाण के आधार पर 24 महीने हुए कठिन शोध के माध्यम से अनिवार्य सेवाओं की प्रभावी आपूर्ति के लिये न्याय की आपूर्ति करने वाली संरचनाओं को सक्षम बनाने में राज्यों का प्रदर्शन आंकती है। यह रिपोर्ट न केवल विभागीय आंकड़ों को एकत्र करती है, बल्कि न्याय वितरण की चार प्रमुख संस्थाओं – पुलिस, न्यायपालिका, जेल और विधिक सहायता – को छह मानकों: बजट, मानव संसाधन, कार्यभार, विविधता, अधोसंरचना और रुझानों के आधार पर राज्य-घोषित मानकों की कसौटी पर जांचती है। इस संस्करण में 25 राज्य मानवाधिकार आयोगों की क्षमताओं का भी पृथक मूल्यांकन किया गया है (अधिक जानकारी के लिए एसएचआरसी ब्रीफ देखें)। साथ ही दिव्यांगजनों के लिए न्याय तक पहुंच और मध्यस्थता विषय पर विशेष निबंध भी शामिल हैं।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए, जस्टिस (रिटायर्ड) मदन बी. लोकुर ने कहा, “हम न्याय प्रणाली की अग्रिम पंक्ति – जैसे पुलिस थानों, पैरालीगल वॉलंटियर्स और जिला अदालतों – को पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण देने में विफल रहे हैं। इसी कारण जनता का भरोसा टूटता है… यह संस्थाएं समान न्याय की हमारी प्रतिबद्धता का प्रतिरूप होनी चाहिए। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट का चौथा संस्करण दर्शाता है कि जब संसाधनों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता, तो सुधार सीमित रह जाते हैं। दुर्भाग्यवश, न्याय पाने का बोझ आज भी उस व्यक्ति पर है जो न्याय मांग रहा है, न कि उस राज्य पर जो उसे प्रदान करना चाहिए।”
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की चीफ एडिटर सुश्री माया दारुवाला ने कहा, ‘’भारत एक लोकतांत्रिक और कानून से चलने वाले देश के तौर पर सौ साल पूरे करने की ओर बढ़ रहा है। लेकिन यदि न्याय प्रणाली में सुधार तय नहीं होंगे, तो कानून के राज और समान अधिकारों का वादा खोखला रहेगा। सुधार अब विकल्प नहीं, आवश्यकता है। संसाधनों से संपन्न, संवेदनशील न्याय प्रणाली एक संवैधानिक अनिवार्यता है, जिसे हर नागरिक के लिए रोज़मर्रा की सच्चाई बनना चाहिए। ।‘’
उत्तर प्रदेश की रैंकिंग: अलग-अलग क्षेत्रों में स्थिति
आईजेआर 4 | आईजेआर 3 | |
कुल | 17 | 18 |
पुलिस व्यवस्था | 17 | 15 |
जेल | 16 | 17 |
न्यायपालिका | 17 | 15 |
कानूनी सहायता | 17 | 18 |
तीन साल से अधिक समय से लंबित मामलों की उच्च हिस्सेदारी
1 जनवरी 2025 तक, इलाहाबाद हाई कोर्ट में देश में सबसे अधिक 11 लाख मामले लंबित थे। इनमें से 71% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित थे, जो इस श्रेणी में सबसे अधिक है। इसके साथ ही, आधे से अधिक जजों की कमी और 78% की कम केस निपटान दर, जो देश में सबसे निचले स्तरों में से एक है, ने स्थिति को और जटिल किया है। जिला अदालतों में, राज्य के 1.2 करोड़ लंबित मामलों में से 53% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं।
पुलिस
जनवरी 2017 से जनवरी 2023 के बीच पुलिस में रिक्तियां काफी कम हुई हैं। कांस्टेबल की रिक्तियां 53% से घटकर 28% और अधिकारियों की रिक्तियां 63% से घटकर 42% हो गई हैं। फोरेंसिक विभाग में, हर दो में से एक वैज्ञानिक कर्मचारी की कमी है और प्रशासनिक कर्मचारियों में 19% की कमी है।
2010 से जनवरी 2023 के बीच, राज्य पुलिस में जाति कोटा पूरा करने में असमर्थ रहा है। अनुसूचित जाति (एससी) अधिकारियों की रिक्तियां इस अवधि में 60% से अधिक रही हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) अधिकारियों की रिक्तियां 88% तक पहुंच गईं, जो 2023 में राज्यों में सबसे अधिक थी। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में कुछ सुधार हुआ है, जहां रिक्तियां 2010 में 59% से घटकर जनवरी 2023 में 23% हो गई हैं।
जेल
उत्तर प्रदेश की जेलें अपनी क्षमता से 80% अधिक भरी हुई हैं और कुल कर्मचारी[1] कमी 28% है। जेल कर्मचारियों में सबसे अधिक कमी चिकित्सा कर्मचारियों (54%) में है और कोई स्वीकृत सुधारात्मक कर्मचारी नहीं है। हर तीन में से एक से अधिक जेलों में 250% से अधिक अधिभोग दर दर्ज की गई। प्रति चिकित्सा अधिकारी 1000 से अधिक कैदी थे।
राज्य ने अपने कुल कानूनी सहायता बजट का 93% योगदान दिया, लेकिन इसका केवल 60% ही उपयोग कर सका। नाल्सा फंड का उपयोग भी 2022-23 में घटकर 19% रह गया। राज्य के 97,000 गांवों के लिए केवल 120 कानूनी सेवा क्लिनिक थे, यानी औसतन एक क्लिनिक 815 गांवों को सेवा देता है।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर) 2025 ने कहा है कि न्याय व्यवस्था में तुरंत और बड़े बदलाव की ज़रूरत है। इसने खाली पदों को जल्दी भरने और सभी तरह के लोगों को न्याय व्यवस्था में शामिल करने पर ज़ोर दिया है। असली बदलाव लाने के लिए, रिपोर्ट ने कहा है कि न्याय देना एक आवश्यक सेवा होना चाहिए।
[1] Overall staff includes officers, cadre staff, correctional staff, medical staff and medical officers,
