पियर्सन सर्वेक्षण का खुलासा: भारत में अंग्रेजी परीक्षा देने वालों को लहजे और रूप-रंग से जुड़ी चुनौतियों का सामना
इस सर्वे में यह सामने आया है कि परीक्षार्थियों को लगता है कि उनके रूप-रंग, बोलने के अंदाज और पहनावे का उनके अंग्रेजी परीक्षा के नतीजों पर गलत असर पड़ सकता है।
- 62% लोगों को लगता है कि उनका भारतीय उच्चारण उनके टेस्ट स्कोर को गलत तरीके से प्रभावित कर सकता है, जबकि 74% का मानना है कि उनके रूप-रंग का भी ऐसा ही असर पड़ सकता है।
- 64% परीक्षार्थियों को विश्वास है कि अगर वे भारतीय की बजाय किसी और लहजे में बोलें तो उनके नंबर बेहतर आ सकते हैं, और 76% को लगता है कि अच्छे स्कोर के लिए उन्हें अपना पहनावा बदलना होगा।
मुंबई: दुनिया की प्रमुख शिक्षा कंपनी पियर्सन (FTSE: PSON.L) और इसकी अंग्रेजी भाषा सिखाने वाली शाखा ने आज पियर्सन टेस्ट ऑफ इंग्लिश (PTE) द्वारा किए गए एक सामाजिक सर्वेक्षण के नतीजे साझा किए हैं। यह सर्वेक्षण उन लोगों पर केंद्रित है जो पढ़ाई, नौकरी या प्रवासन (माइग्रेशन) वीज़ा के लिए अंग्रेजी परीक्षा देते हैं। सर्वे से पता चला कि भारत में 62% परीक्षार्थियों को लगता है कि उनके भारतीय लहजे की वजह से उनके बोलने के टेस्ट पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। वहीं, 74% लोगों का मानना है कि अगर परीक्षा में कोई मानव परीक्षक शामिल होता है, तो उनकी शारीरिक बनावट उनके स्कोर को प्रभावित कर सकती है। इस सर्वे में परीक्षार्थियों की उन चिंताओं को उजागर किया गया है जो रूप-रंग, उच्चारण और वेशभूषा से जुड़ी पूर्वधारणाओं पर आधारित हैं। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि परीक्षाओं की प्रणाली निष्पक्ष होनी चाहिए, जो केवल परीक्षार्थी के ज्ञान और क्षमता पर आधारित हो। खासकर तब, जब यह परीक्षा उनके भविष्य को प्रभावित कर सकती हो।
अलग सोच, अलग व्यवहार
सर्वे के मुताबिक, 59% लोगों का मानना है कि उनके त्वचा के रंग के आधार पर उनके साथ अलग व्यवहार किया जा सकता है, जिससे उनमें यह डर बैठ जाता है कि गोरी त्वचा वाले लोगों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है। इसी तरह, 64% लोगों को लगता है कि उनका पहनावा उनके बारे में गलत धारणा बना सकता है। महाराष्ट्र में यह सोच और भी गहरी है, जहां 67% लोगों को लगता है कि उनके कपड़ों के आधार पर उन्हें परखा जाएगा।
इसके अलावा, 70% लोगों को लगता है कि किसी की नौकरी और शिक्षा भी उसके साथ किए जाने वाले व्यवहार को प्रभावित कर सकती है। खासतौर पर महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के लोगों को लगता है कि अगर किसी की नौकरी प्रतिष्ठित है या उसकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि मजबूत है, तो उसके साथ ज्यादा सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है।
सामाजिक धारणाओं का असर परीक्षा के नतीजों पर
अवचेतन पूर्वाग्रह का असर गहरा होता है, खासतौर पर भारत जैसे विविधता से भरे देश में, जहां किसी की बोली को उसकी बुद्धिमानी और ज्ञान से जोड़कर देखा जाता है। सर्वे के अनुसार, 63% परीक्षार्थी, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के, मानते हैं कि अंग्रेज़ी बोलते समय यदि वे भारतीय लहजा छोड़ दें, तो उनके अंक बेहतर हो सकते हैं।
इसी तरह, बाहरी दिखावट को भी परीक्षा के नतीजों पर असर डालने वाला कारक माना जाता है। पंजाब में यह धारणा सबसे मजबूत दिखी, जहां 77% लोगों का मानना है कि उनके रूप-रंग और पहनावे का असर उनके बोलने के टेस्ट के नतीजों पर पड़ सकता है।
सही प्रभाव जमाने के लिए खुद को बदलना
लगभग 64% लोगों का मानना है कि एक खास तरह का उच्चारण अपनाने से वे स्पीकिंग टेस्ट में बेहतर स्कोर हासिल कर सकते हैं। तमिलनाडु के 35% लोगों को लगता है कि अमेरिकी उच्चारण से अच्छे अंक मिल सकते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश के 21% लोगों का मानना है कि ब्रिटिश उच्चारण उनके लिए फायदेमंद रहेगा। वहीं, 76% से अधिक लोगों को विश्वास है कि अगर वे फॉर्मल कपड़े पहनें तो वे ज्यादा ‘प्रोफेशनल’ दिख सकते हैं, जिससे उनके नंबर बढ़ सकते हैं।
निष्पक्षता के लिए पियर्सन का कदम
पियर्सन इंडिया में अंग्रेज़ी भाषा लर्निंग के डायरेक्टर प्रभुलरविन्द्रनकहते हैं, “भारत में लंबे समय से लोग अपनी बोली और रूप-रंग को लेकर असुरक्षित महसूस करते आए हैं, और इसका असर उनके करियर के अवसरों और कमाई की संभावनाओं पर पड़ा है। हमने यह भी देखा है कि कई अहम मौकों पर, जहां किसी का भविष्य दांव पर लगा होता है, ये पूर्वाग्रह उनके रास्ते की रुकावट बन जाते हैं। अंग्रेज़ी भाषा की परीक्षाएं और वैश्विक स्तर पर अवसरों की तलाश भी इससे अछूती नहीं हैं। लेकिन पियर्सन इस स्थिति को बदलने के लिए काम कर रहा है।
हमारी मूल्यांकन प्रणाली एडवांस टेक्नोलॉजी, ज़िम्मेदार एआई और भाषा विशेषज्ञों का इस्तेमाल करती है, ताकि परीक्षार्थियों की अंग्रेज़ी दक्षता का पूरी तरह निष्पक्ष आकलन किया जा सके। इस प्रणाली में आमने-सामने इंटरव्यू की जरूरत नहीं होती और यह 125 से अधिक उच्चारणों को पहचानने में सक्षम है। हमारा मकसद एक ऐसी परीक्षा प्रणाली विकसित करना है जो किसी भी पूर्वाग्रह से मुक्त हो और सिर्फ भाषा के ज्ञान और क्षमता को महत्व दे। हमारा लक्ष्य एक ऐसा सकारात्मक और समावेशी माहौल बनाना है, जहां हर व्यक्ति को अपने सपनों को पूरा करने का निष्पक्ष अवसर मिल सके।”
भाषा कौशल को प्राथमिकता देने की मुहिम
पियर्सन टेस्ट ऑफ़ इंग्लिश का नया कैंपेन इसी सोच को आगे बढ़ाता है और निष्पक्ष अंग्रेज़ी भाषा परीक्षण की जरूरत को उजागर करता है। यह दिखाता है कि किस तरह लोग समाज में स्वीकार्यता पाने के लिए अपने बोलने या दिखने के तरीके को बदलने की कोशिश करते हैं। यह मुहिम सभी को इस विषय पर सोचने और बातचीत करने के लिए प्रेरित करती है, ताकि एक ऐसा माहौल बनाया जा सके जहां योग्यता और क्षमता को सबसे ज्यादा महत्व मिले, न कि किसी के लहजे या रूप-रंग को। इस अभियान से जुड़ें और #PTEForFairness आंदोलन का हिस्सा बनें
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